tum
तुम
जाने कब से बैठा हूँ, मैं इसी मंथन में ।
कैसे बांधू , तुमको शब्दों के बंधन में ।
कैसे बताऊँ तुम्हारा महत्व अपने जीवन में ।
लाख कोशिश के बाद भी नाकाम हूँ, इस जतन में ।
कहने को तो तुम्हारे बिना भी जिंदा हूँ ।
पर अंतर नहीं है, ऐसे जीवन और मरण में ।
शायद और ऊँचा उड़ सकता हूँ, तुम्हारे बिना ।
बिना ख़ुशी कामयाबी की कीमत है? हूँ इसी चिंतन में ।
जीवन को हर्षित करने वाला सतरंगी स्पर्श हो तुम ।
भोतिकता के अभाब में भी, संपूर्णता का अहसास हो तुम ।
ज़िन्दगी खूबसूरत बनाने वाला प्रफुल्लता का साज हो तुम ।
कह सकता हूँ, संक्षेप में मेरा कल और आज हो तुम ।
जाने कब से बैठा हूँ, मैं इसी मंथन में ।
कैसे बांधू , तुमको शब्दों के बंधन में ।
कैसे बताऊँ तुम्हारा महत्व अपने जीवन में ।
लाख कोशिश के बाद भी नाकाम हूँ, इस जतन में ।
कहने को तो तुम्हारे बिना भी जिंदा हूँ ।
पर अंतर नहीं है, ऐसे जीवन और मरण में ।
शायद और ऊँचा उड़ सकता हूँ, तुम्हारे बिना ।
बिना ख़ुशी कामयाबी की कीमत है? हूँ इसी चिंतन में ।
जीवन को हर्षित करने वाला सतरंगी स्पर्श हो तुम ।
भोतिकता के अभाब में भी, संपूर्णता का अहसास हो तुम ।
ज़िन्दगी खूबसूरत बनाने वाला प्रफुल्लता का साज हो तुम ।
कह सकता हूँ, संक्षेप में मेरा कल और आज हो तुम ।
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home